सोने की मोहरों से खरीदी गई 4 गज जमीन: दुनिया का सबसे महंगा सौदा और सिख धर्म का पवित्र स्थल

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सोने की मोहरों से खरीदी गई 4 गज जमीन

इतिहास का अनोखा अध्याय: जहां जमीन की कीमत चुकाई गई सोने से

सोने की मोहरों से खरीदी गई 4 गज जमीन: जब दुनिया की सबसे महंगी जमीन की बात होती है, तो आमतौर पर हांगकांग, न्यूयॉर्क या मुंबई जैसे बड़े शहरों का नाम सामने आता है। लेकिन इतिहास में एक ऐसा भी सौदा हुआ, जहां चार गज जमीन के लिए 78,000 सोने की मोहरें बिछाकर कीमत चुकाई गई। यह सौदा किसी व्यापारिक उद्देश्य के लिए नहीं, बल्कि सिख धर्म के दो महान शहीद साहिबजादों और माता गुजरी के अंतिम संस्कार के लिए किया गया था। यह स्थान पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में स्थित गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप साहिब है, जिसे दुनिया की सबसे महंगी और पवित्र भूमि माना जाता है।

कैसे हुआ दुनिया का सबसे महंगा जमीन सौदा?

1705 में जब मुगलों ने सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह (6 वर्ष) और फतेह सिंह (9 वर्ष) को उनके धर्म की परीक्षा लेने के लिए कैद किया, तो उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन इन वीर बालकों ने धर्म से समझौता करने के बजाय शहीदी को चुना। क्रूर नवाब वजीर खान ने दीवार में जिंदा चिनवा कर दोनों साहिबजादों को शहीद कर दिया। उनकी दादी माता गुजरी ने भी यह दुख सहन न कर पाने के कारण प्राण त्याग दिए।

लेकिन इसके बाद भी मुगलों का जुल्म यहीं खत्म नहीं हुआ। उन्होंने इन तीनों के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए देने से इनकार कर दिया। यह वह क्षण था जब दीवान टोडरमल आगे आए। वे सरहिंद के नवाब के दरबार में एक जैन विद्वान और प्रतिष्ठित मंत्री थे। उन्होंने नवाब से अंतिम संस्कार के लिए जमीन मांगी, लेकिन शर्त रखी गई कि जितनी जमीन चाहिए, उसकी पूरी कीमत सोने की मोहरों से चुकानी होगी—वह भी सिक्कों को जमीन पर खड़ा करके।

(Image Source : sikh24.com)

78,000 सोने की मोहरें: इतिहास में कभी न भुलाए जाने वाला बलिदान

दीवान टोडरमल ने अपने घर और संपत्ति को बेचकर 78,000 सोने की मोहरें इकट्ठी कीं और उन्हें खड़ा करके नवाब के सामने रखा। तब जाकर उन्हें चार गज जमीन दी गई, जहां उन्होंने साहिबजादों और माता गुजरी का अंतिम संस्कार किया।

यह इतिहास का सबसे महंगा जमीन सौदा बन गया, क्योंकि इतने छोटे से भूमि टुकड़े के लिए आज तक इतनी अधिक कीमत किसी ने नहीं चुकाई। यह त्याग, बलिदान और निष्ठा की एक अनूठी मिसाल है, जिसे सिख धर्म में एक पवित्र गाथा के रूप में याद किया जाता है।

जहां साहिबजादों का अंतिम संस्कार हुआ, वहां बना गुरुद्वारा

जिस स्थान पर यह बलिदान हुआ, वहां गुरुद्वारा श्री ज्योति स्वरूप साहिब स्थापित किया गया। यही नहीं, दीवान टोडरमल की याद में गुरुद्वारे के बेसमेंट को “दीवान टोडरमल जैन हॉल” नाम दिया गया। यह स्थान न सिर्फ सिख इतिहास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया, बल्कि सिख धर्म के त्याग और बलिदान की गवाही भी देता है।

Gurdwara Shri Jyoti Saroop

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दीवान टोडरमल: एक महान नायक जिनका नाम इतिहास में अमर रहेगा

दीवान टोडरमल सिर्फ एक मंत्री नहीं, बल्कि सिख धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा और निष्ठा रखने वाले एक नायक थे। उनकी हवेली, जिसे जहाज हवेली या जहाज महल कहा जाता है, आज भी फतेहगढ़ साहिब के हरनाम नगर में मौजूद है। पंजाब सरकार इसे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की मदद से संरक्षित कर रही है।

जब गुरु गोबिंद सिंह जी को इस घटना की जानकारी मिली, तो उन्होंने दीवान टोडरमल को आशीर्वाद देने की इच्छा व्यक्त की। लेकिन टोडरमल ने एक अनोखी इच्छा जताई—कि उनके वंश में कोई पुत्र न हो। उनका तर्क था कि जिस जमीन को उन्होंने सोने की मोहरें बिछाकर खरीदा, वह भविष्य में उनके वंशजों की पहचान न बने, बल्कि यह हमेशा गुरु साहिब और उनके साहिबजादों की शहादत के रूप में जानी जाए।

आज भी आस्था और बलिदान का प्रतीक है फतेहगढ़ साहिब

हर साल सिख श्रद्धालु बड़ी संख्या में गुरुद्वारा ज्योति स्वरूप साहिब पहुंचते हैं और इस स्थान को श्रद्धा से नमन करते हैं। फतेहगढ़ साहिब में 26 से 28 दिसंबर तक शहीदी जोड़ मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां लाखों लोग आकर साहिबजादों की शहादत को याद करते हैं।

बलिदान की मिसाल, दुनिया की सबसे महंगी और पवित्र जमीन

फतेहगढ़ साहिब में स्थित यह चार गज जमीन सिर्फ एक भूमि का टुकड़ा नहीं, बल्कि इतिहास की सबसे बड़ी कुर्बानी की गवाही देती है। यह दर्शाती है कि धर्म, निष्ठा और बलिदान की कीमत किसी भी भौतिक संपत्ति से अधिक होती है।

यह स्थान सिख धर्म की आस्था का केंद्र बन चुका है, जहां हर साल लाखों श्रद्धालु अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करने आते हैं। दीवान टोडरमल का यह बलिदान और साहिबजादों की शहादत इतिहास में अमर रहेगी।

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