AI बनाम इंसान: कौन करता है ज्यादा गलती? Anthropic CEO ने दिया जवाब

India Briefs Team
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Human vs Ai

AI (Artificial Intelligence) की दुनिया में लगातार हो रहे बदलावों और इसकी बढ़ती लोकप्रियता के बीच एक सवाल तेजी से चर्चा में है — आखिर ज्यादा गलतियां कौन करता है, इंसान या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस? इसी बहस पर रोशनी डालते हुए AI स्टार्टअप Anthropic के CEO डारियो अमोडेई ने हाल ही में एक टेक इवेंट में चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने न सिर्फ AI की सीमाओं को स्वीकार किया, बल्कि यह भी बताया कि इंसानों और मशीनों की गलतियों को किस नजरिए से देखा जाना चाहिए।

इंसान बनाम AI: तुलना आसान नहीं

डारियो अमोडेई का कहना है कि इंसान और AI की गलतियों की तुलना करना एक जटिल काम है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप “गलती” को किस संदर्भ में और कैसे मापते हैं। इंसान अकसर तथ्यात्मक गलतियां करता है, लेकिन उनकी इन गलतियों को हम सामाजिक और भावनात्मक समझ के आधार पर स्वीकार कर लेते हैं। वहीं, जब कोई AI मॉडल आत्मविश्वास से कोई गलत जानकारी प्रस्तुत करता है, तो यह समाज को ज्यादा चौंकाता है।

अमोडेई ने उदाहरण देते हुए कहा, “टीवी एंकर, राजनेता, शिक्षक या आम नागरिक—हर कोई कभी न कभी गलत जानकारी देता है। लेकिन हम उनकी नीयत और अनुभव को देखते हुए उन्हें क्षमा कर देते हैं। इसी तरह, AI से भी यह उम्मीद करना कि वह कभी गलती न करे, एक अव्यावहारिक सोच है।”

AI की सबसे बड़ी कमजोरी: ‘Hallucination’

AI तकनीक की सबसे गंभीर और बहुचर्चित समस्याओं में से एक है ‘hallucination’। यह वह स्थिति होती है जब AI मॉडल बिना किसी सटीक स्रोत के मनगढ़ंत जानकारी बना देता है और उसे सच्चाई की तरह प्रस्तुत करता है। यह केवल तथ्यात्मक गलती नहीं होती, बल्कि कई बार यह उपयोगकर्ताओं को गुमराह भी कर सकती है।

डारियो अमोडेई ने साफ शब्दों में कहा कि अगर hallucination की इस समस्या पर समय रहते नियंत्रण नहीं पाया गया, तो यह पूरे AI उद्योग के लिए सबसे बड़ी आलोचना का कारण बन सकती है। उन्होंने इस बात को स्वीकार किया कि Anthropic का खुद का Claude मॉडल भी कई बार इस गलती का शिकार हुआ है, जिससे कंपनी को कानूनी और नैतिक सवालों का सामना करना पड़ा।

AI इंडस्ट्री के दिग्गज भी परेशान

Anthropic अकेली कंपनी नहीं है जो AI गलतियों और hallucination से जूझ रही है। OpenAI, Google और यहां तक कि Apple जैसी टेक दिग्गज कंपनियों को भी इस चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। हाल ही में Apple को अपने नए AI फीचर में झूठी न्यूज समरी की वजह से उसकी सार्वजनिक लॉन्चिंग टालनी पड़ी थी। Google के Gemini मॉडल पर भी कई बार गलत जानकारी देने के आरोप लगे हैं।

OpenAI के ChatGPT को लेकर भी कई बार रिपोर्ट आई हैं कि वह ऐतिहासिक घटनाओं, वैज्ञानिक तथ्यों या मेडिकल सलाह को लेकर गलत या भ्रामक जानकारी दे रहा है। यही वजह है कि AI कंपनियां अब “फैक्ट चेकिंग” और “सत्यापन” की प्रक्रिया को मजबूत करने में निवेश कर रही हैं।

क्या इंसान बेहतर है?

इस बहस में एक और रोचक पहलू यह है कि जब AI कोई गलती करता है, तो उसकी आलोचना बहुत तीखी होती है, लेकिन जब इंसान वही गलती करता है, तो उसे “मानवीय भूल” कहकर नजरअंदाज कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंसान की भावनाएं, अनुभव और सामाजिक समझ उसे एक तरह की सुरक्षा प्रदान करते हैं। वहीं AI एक मशीन है, जिससे हम अपेक्षा करते हैं कि वह 100% सटीक हो — जो कि व्यवहारिक नहीं है।

अमोडेई ने इस बात को रेखांकित किया कि इंसानों को हमेशा एक “बुद्धिमान जीव” माना गया है, जो सीखने और सुधरने में सक्षम होता है। अब समय आ गया है कि हम AI को भी उसी नजरिए से देखें — एक ऐसी प्रणाली के रूप में जो लगातार सीख रही है और सुधार की प्रक्रिया में है।

समाधान क्या है?

AI की गलतियों को पूरी तरह खत्म करना शायद संभव नहीं है, लेकिन इन्हें कम करना और बेहतर ढंग से प्रबंधित करना जरूर संभव है। इसके लिए कंपनियों को न सिर्फ अपने मॉडलों की ट्रेनिंग डेटा को ज्यादा सटीक और विविध बनाना होगा, बल्कि जवाबदेही और पारदर्शिता जैसे पहलुओं को भी प्राथमिकता देनी होगी।

Anthropic जैसी कंपनियां अब “संयमित AI” (constitutional AI) पर काम कर रही हैं, जहां मॉडल को नैतिक दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रशिक्षित किया जाता है। इसका उद्देश्य AI को ऐसा बनाना है जो न सिर्फ सही जवाब दे, बल्कि यह भी समझे कि कब उसे जवाब नहीं देना चाहिए।

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संतुलित दृष्टिकोण जरूरी

AI बनाम इंसान की इस बहस में किसी एक को गलत ठहराना या श्रेष्ठ बताना उचित नहीं होगा। हमें यह समझना होगा कि दोनों की गलतियों के प्रकार, संदर्भ और प्रभाव अलग होते हैं। AI की गलतियों से जहाँ तकनीकी और सूचना संबंधी नुकसान हो सकता है, वहीं इंसानों की गलतियां सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर ज्यादा असर डालती हैं।

डारियो अमोडेई की टिप्पणी इस ओर इशारा करती है कि हमें AI से जुड़ी उम्मीदों और उसके मूल्यांकन के तरीकों में संतुलन लाना होगा। तकनीक में सुधार की प्रक्रिया सतत है और AI की क्षमता को समझते हुए उसके उपयोग को विवेकपूर्ण बनाना समय की मांग है।

समझदारी से करें AI का इस्तेमाल

AI की दुनिया में यह स्वीकार करना जरूरी है कि इंसान और मशीन दोनों ही गलतियां कर सकते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि इंसानी गलतियों को हम अक्सर “सामान्य” मान लेते हैं, जबकि AI की गलतियों को “चौंकाने वाला” समझते हैं। हमें इस दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा।

AI एक सहायक उपकरण है, कोई सर्वज्ञानी नहीं। अगर हम इसे समझदारी और जिम्मेदारी से इस्तेमाल करें, तो यह न केवल हमारी उत्पादकता बढ़ा सकता है, बल्कि समाज में सार्थक बदलाव भी ला सकता है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि हम इसकी सीमाओं को पहचानें, स्वीकारें और लगातार सुधार की दिशा में काम करते रहें।

डारियो अमोडेई की यह स्पष्ट और संतुलित सोच इस बात का प्रमाण है कि AI की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए तकनीक के साथ-साथ एक परिपक्व सोच भी जरूरी है।

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