iPhone की कीमत: हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने Apple को यह निर्देश दिया कि वह अपने iPhone और अन्य प्रोडक्ट्स का निर्माण अमेरिका में करे, अन्यथा उसे 25% तक आयात शुल्क (import duty) चुकाने के लिए तैयार रहना होगा। यह बयान भले ही राजनीतिक दृष्टिकोण से दिया गया हो, लेकिन इसका प्रभाव वैश्विक स्मार्टफोन इंडस्ट्री पर पड़ सकता है, विशेष रूप से Apple जैसे वैश्विक ब्रांड पर।
Apple जैसी कंपनी, जो एक अत्यधिक जटिल और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) पर निर्भर करती है, के लिए निर्माण स्थान को स्थानांतरित करना केवल एक नीतिगत निर्णय नहीं बल्कि एक भारी निवेश और रणनीतिक योजना की मांग करता है। यदि Apple भविष्य में अपने iPhone का निर्माण पूरी तरह अमेरिका में करता है, तो इससे न केवल उत्पादन लागत में भारी इजाफा होगा, बल्कि इसका सीधा असर उपभोक्ता कीमतों पर भी पड़ेगा।
अमेरिका में iPhone निर्माण की लागत: क्या कहते हैं विशेषज्ञ ?
तकनीकी विशेषज्ञों और आपूर्ति श्रृंखला विश्लेषकों के अनुसार, अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग करना एशियाई देशों की तुलना में 20% से 40% तक महंगा साबित हो सकता है। इसका मुख्य कारण है—अमेरिका की उच्च मजदूरी दर, पर्यावरण और श्रम संबंधी कड़े कानून, और टैक्स एवं इंश्योरेंस से जुड़ी अतिरिक्त जिम्मेदारियां।
उदाहरण के तौर पर, भारत में iPhone 15 Pro (512 GB) की कीमत ₹1,39,900 है। यदि यही मॉडल अमेरिका में मैन्युफैक्चर किया जाए, तो इसकी कीमत ₹1,70,000 से ₹2,00,000 तक जा सकती है। यह बढ़ोतरी केवल हार्डवेयर लागत नहीं, बल्कि पूरे इकोसिस्टम—डिज़ाइन, लॉजिस्टिक्स, कंपोनेंट सप्लायर्स और असेंबली प्लांट—की उच्च लागत को दर्शाती है।
भारत बनाम अमेरिका: निर्माण में लागत और रणनीति का अंतर
भारत में Apple पहले से ही Foxconn, Pegatron और Wistron जैसी पार्टनर कंपनियों के माध्यम से iPhone का असेंबली कार्य करता है। ‘मेक इन इंडिया’ पहल और भारत सरकार की PLI (Production Linked Incentive) योजना के चलते कंपनियों को टैक्स छूट और अन्य वित्तीय प्रोत्साहन मिलते हैं। इससे उत्पादन लागत में उल्लेखनीय कमी आती है।
भारत में मजदूरी दर अपेक्षाकृत कम है, और सप्लाई चेन भी स्थानीय स्तर पर काफी मजबूत हो चुकी है। इसके विपरीत अमेरिका में एक प्रशिक्षित मैन्युफैक्चरिंग वर्कफोर्स तैयार करना, नई फैक्ट्रियों की स्थापना करना और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क बनाना बेहद खर्चीला और समय लेने वाला कार्य है।
साथ ही, अमेरिका में फैक्ट्रियां आमतौर पर यूनियनाइज्ड (Unionized) होती हैं, जो मजदूरी, स्वास्थ्य लाभ और अन्य सुविधाओं की लागत को कई गुना बढ़ा देती हैं। टेक्सास, कैलिफोर्निया जैसे राज्यों में बिजली, रियल एस्टेट और कच्चे माल की लागत भारत की तुलना में अत्यधिक है।
ग्राहकों पर असर: क्या iPhone बन जाएगा लग्ज़री से भी ऊपर?
अगर iPhone का निर्माण अमेरिका में होता है, तो Apple को अपनी प्रॉफिट मार्जिन बरकरार रखने के लिए लागत बढ़ोतरी को सीधे ग्राहकों पर डालना होगा। इसका परिणाम होगा—iPhone की कीमतों में तेज़ वृद्धि, जिससे यह उत्पाद भारत जैसे बाजारों में अधिकांश उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो सकता है।

साथ ही, Apple को इस तरह के बदलाव के लिए अपने पूरे आपूर्ति श्रृंखला मॉडल को फिर से डिज़ाइन करना होगा, जिसमें समय, निवेश और रणनीतिक पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। इससे न केवल iPhone बल्कि Mac, iPad और अन्य Apple उत्पादों की कीमतों पर भी असर पड़ सकता है।
क्या अमेरिका में iPhone निर्माण व्यावहारिक है?
संक्षेप में कहा जाए तो अमेरिका में iPhone का निर्माण करना तकनीकी रूप से संभव जरूर है, लेकिन यह Apple के बिजनेस मॉडल के लिए न सिर्फ आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण होगा, बल्कि वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उसकी स्थिति को भी कमजोर कर सकता है।
Apple जैसे ब्रांड के लिए लॉन्ग-टर्म रणनीति यही होगी कि वह अमेरिका में कुछ हाई-एंड असेंबली यूनिट्स स्थापित करे ताकि राजनीतिक दबाव का जवाब दिया जा सके, लेकिन मुख्य मैन्युफैक्चरिंग ऑपरेशंस भारत और वियतनाम जैसे देशों में बनाए रखे जाएं, जहां लागत और स्केलेबिलिटी दोनों का संतुलन संभव है।
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