ब्याज दरों में बदलाव का Home Loan EMI पर क्या प्रभाव पड़ता है?

India Briefs Team
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ब्याज दरों का Home Loan EMI पर प्रभाव

घर खरीदने के लिए लोन लेना जितना आसान लगता है, उतना ही चुनौतीपूर्ण होता है उसकी EMI (Equated Monthly Installment) को समय पर चुकाना — खासकर तब, जब मार्केट में ब्याज दरों (Interest Rates) में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

इस लेख में टैक्स और निवेश सलाहकार राकेश बावेज की विशेषज्ञ राय के आधार पर समझिए कि Home Loan EMI पर ब्याज दर का असर कैसे पड़ता है और आप इसे लेकर क्या कदम उठा सकते हैं।


EMI का गणित: मूलधन और ब्याज

हर EMI दो हिस्सों में बंटी होती है — मूलधन (Principal) और ब्याज (Interest)
शुरुआती वर्षों में Home Loan EMI का बड़ा हिस्सा ब्याज की ओर जाता है और धीरे-धीरे मूलधन की हिस्सेदारी बढ़ती है। Home Loan EMI इस तरह तय की जाती है कि लोन की तय अवधि में पूरा कर्ज चुक जाए।


फ्लोटिंग बनाम फिक्स्ड रेट होम लोन में अंतर

  • फिक्स्ड रेट लोन (Fixed Rate Loan): इसमें ब्याज दर स्थिर रहती है, चाहे बाजार की दरें बढ़ें या घटें। इससे EMI और लोन अवधि पर कोई असर नहीं होता।
  • फ्लोटिंग रेट लोन (Floating Rate Loan): इसमें लोन की ब्याज दर समय-समय पर बाजार दरों के अनुसार बदलती है। यहीं से EMI या लोन अवधि में बदलाव की कहानी शुरू होती है।

ब्याज दर बढ़े तो EMI या लोन अवधि—किस पर असर पड़ेगा?

ब्याज दर घटे:

यदि ब्याज दर घटती है तो बैंक सामान्यतः EMI को जस का तस रखते हैं और लोन की अवधि घटा देते हैं। इससे कुल ब्याज की बचत होती है।

ब्याज दर बढ़े:

अधिकतर मामलों में बैंक EMI को स्थिर रखते हैं और लोन की अवधि बढ़ा देते हैं। परंतु कुछ स्थितियों में EMI भी बढ़ाई जा सकती है:

  1. ब्याज दर बहुत ज्यादा बढ़ जाए:
    EMI की मौजूदा राशि केवल ब्याज चुकाने के लिए भी पर्याप्त न हो, तब बैंक EMI बढ़ाना अनिवार्य मानते हैं।
  2. लोन अवधि सेवानिवृत्ति की उम्र से आगे निकल जाए:
    बैंक चाहते हैं कि लोन का भुगतान उधारकर्ता की कमाई की अवधि में ही पूरा हो जाए। ऐसी स्थिति में भी EMI बढ़ाई जा सकती है।

इन परिस्थितियों में उधारकर्ता को फाइनेंशियली काफी दबाव महसूस हो सकता है। यदि आपके पास अतिरिक्त पैसा है, तो एकमुश्त राशि (Lump Sum Payment) जमा करना एक व्यावहारिक विकल्प हो सकता है।

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EMI और आयकर छूट (Tax Benefits on EMI)

1. मूलधन की चुकौती (Principal Repayment)

  • धारा 80C के तहत 1.5 लाख रुपये तक की छूट मिलती है।
  • यह छूट तभी मान्य होती है जब लोन किसी मान्यता प्राप्त संस्था से लिया गया हो।
  • नई टैक्स व्यवस्था (New Tax Regime) में यह छूट उपलब्ध नहीं है।

2. ब्याज भुगतान (Interest Payment)

  • धारा 24 (बी) के अंतर्गत अधिकतम ₹2 लाख तक की छूट मिलती है, बशर्ते आप खुद उस घर में रह रहे हों।
  • यदि मकान किराए पर है, तो पूरे ब्याज पर छूट मिलती है, लेकिन दूसरे स्रोतों के विरुद्ध अधिकतम दो लाख रुपये का नुकसान ही समायोजित किया जा सकता है।

नोट: नई टैक्स व्यवस्था में किराए की आय तक ही ब्याज छूट सीमित होती है।

3. निर्माणाधीन संपत्ति पर ब्याज

  • जब तक प्रॉपर्टी पूरी नहीं होती, ब्याज की कटौती उपलब्ध नहीं होती।
  • निर्माण पूरा होने के बाद, पिछले वर्षों का ब्याज 5 समान किस्तों में कटौती योग्य होता है।

क्या करें अगर EMI बढ़ जाए?

अगर बैंक EMI बढ़ाने पर जोर दे रहा है, तो घबराएं नहीं। ये उपाय मददगार हो सकते हैं:

  • लोन ट्रांसफर (Loan Transfer): किसी अन्य बैंक में ट्रांसफर कर सस्ती ब्याज दर पाएं।
  • भुगतान (Lumpsum Payment): बोनस, एफडी या निवेश से अतिरिक्त EMI भुगतान करें।
  • रीफाइनेंसिंग (Refinancing): EMI को फिर से नेगोशिएट करें या पार्ट पेमेंट का विकल्प चुनें।

Home Loan EMI पर ब्याज दर का असर कई बातों पर निर्भर करता है — जैसे कि आपने फिक्स्ड या फ्लोटिंग रेट चुना है, बैंक की नीति क्या है, और आपकी भुगतान क्षमता कितनी है। EMI को लेकर सतर्क और जागरूक रहना बेहद जरूरी है। साथ ही टैक्स लाभ को ध्यान में रखते हुए पुराने और नए टैक्स सिस्टम के फायदे-नुकसान का विश्लेषण करना भी ज़रूरी है।


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