भारत में डिजिटल उपभोक्ता संरक्षण को सशक्त बनाने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) ने एक महत्वपूर्ण पहल की है। CCPA ने देश की सभी प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों को सख्त निर्देश जारी करते हुए कहा है कि वे तीन महीनों के भीतर अपने प्लेटफॉर्म से डार्क पैटर्न (Dark Patterns) हटा दें। यदि कंपनियां ऐसा करने में विफल रहती हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
इस निर्देश का उद्देश्य उपभोक्ताओं को भ्रामक ऑनलाइन खरीदारी अनुभव से बचाना है और डिजिटल पारदर्शिता को बढ़ावा देना है।
डार्क पैटर्न क्या होते हैं? (What Are Dark Patterns?)
डार्क पैटर्न ऐसे डिज़ाइन या तकनीकी इंटरफेस होते हैं, जो उपभोक्ताओं को भ्रमित करते हैं और उन्हें ऐसे निर्णय लेने पर मजबूर करते हैं जो वे सामान्य परिस्थिति में नहीं लेते। इनमें शामिल हैं:
- पूर्व-चयनित विकल्प (Pre-Selected Options): जैसे चुपचाप ‘टिप जोड़ें’ का विकल्प एक्टिव होना।
- भ्रामक बटन लेबल: जैसे ‘No’ बटन को ‘Maybe Later’ से बदलना।
- महत्वपूर्ण जानकारी छुपाना: रिफंड, सब्सक्रिप्शन कैंसिलेशन या अतिरिक्त शुल्क की जानकारी को कम विजिबल रखना।
- आक्रामक पॉपअप और टाइमर: जो उपभोक्ता को ‘जल्दी निर्णय’ लेने पर दबाव डालते हैं।
यह सब उपभोक्ता अधिकारों का सीधा उल्लंघन है।
ई-कॉमर्स कंपनियों को करना होगा सेल्फ ऑडिट
CCPA ने सभी कंपनियों को निर्देश दिया है कि वे अपने प्लेटफॉर्म पर लागू सभी UX/UI डिज़ाइनों का आंतरिक मूल्यांकन करें। कंपनियों को यह तय करना होगा कि उनका डिज़ाइन उपभोक्ता को पारदर्शिता के साथ निर्णय लेने का अवसर देता है या नहीं।
CCPA ने कहा है कि इस दिशा में की गई हर प्रगति की रिपोर्ट तीन महीने के भीतर प्रस्तुत करनी होगी। यह सेल्फ ऑडिट केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि डिजिटल उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा की ओर एक ठोस कदम होगा।
संयुक्त कार्य समूह का गठन: निगरानी और रिपोर्टिंग की जिम्मेदारी
उपभोक्ता मामलों की सचिव निधि खरे ने जानकारी दी कि एक संयुक्त कार्य समूह (Joint Working Group) का गठन किया गया है। इसमें शामिल हैं:
- केंद्रीय मंत्रालयों के प्रतिनिधि
- स्वैच्छिक उपभोक्ता संगठन
- राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (NLU) के विशेषज्ञ
यह कार्य समूह डार्क पैटर्न से संबंधित शिकायतों की निगरानी करेगा, समाधान सुझाएगा और CCPA को रिपोर्ट सौंपेगा।
पहले भी जारी हो चुके हैं नोटिस
CCPA पहले भी कुछ प्रमुख कंपनियों को चेतावनी दे चुका है। उबर (Uber) को टिप सिस्टम को लेकर नोटिस जारी किया गया था, जिसमें ग्राहकों से उनकी सहमति के बिना शुल्क वसूला जा रहा था।
यह नोटिस स्पष्ट करता है कि कोई भी शुल्क केवल उपभोक्ता की स्पष्ट सहमति से ही लिया जा सकता है। किसी भी प्रकार की ‘डिफ़ॉल्ट चार्जिंग’ को अब उपभोक्ता अधिकारों के विरुद्ध माना जाएगा।
जागरूकता अभियान और सतत निगरानी भी शुरू
डार्क पैटर्न के खतरे को लेकर उपभोक्ताओं को जागरूक करना भी CCPA की प्राथमिकता है। इसी उद्देश्य से एक राष्ट्रीय स्तर का Awareness Campaign शुरू किया गया है।
इसमें बताया जाएगा कि
- कौन-से डिज़ाइन तत्व डार्क पैटर्न माने जाते हैं
- उनसे कैसे बचा जाए
- और यदि कोई प्लेटफॉर्म डार्क पैटर्न का उपयोग कर रहा है तो उपभोक्ता कहां शिकायत कर सकते हैं
साथ ही, निगरानी तंत्र को और मजबूत किया जाएगा ताकि उल्लंघन की स्थिति में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित हो सके।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही तय होगी
Amazon, Flipkart, Myntra, Zomato, Swiggy जैसे बड़े ई-कॉमर्स ब्रांड्स को अब अपने इंटरफेस में बदलाव करने होंगे। वेबसाइट और ऐप में ऐसे एलिमेंट्स को हटाना अनिवार्य होगा जो उपभोक्ता को भ्रम में डालते हैं या छिपे हुए शुल्क लागू करते हैं।
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उपभोक्ता अधिकारों की दिशा में अहम कदम
CCPA की यह कार्रवाई डिजिटल उपभोक्ता संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखी जा रही है। डार्क पैटर्न जैसी भ्रामक तकनीकों के उन्मूलन से ई-कॉमर्स इंडस्ट्री में पारदर्शिता बढ़ेगी और उपभोक्ता का विश्वास बहाल होगा।
यह फैसला न सिर्फ कंपनियों की जवाबदेही तय करता है, बल्कि डिजिटल इंडिया अभियान को भी नई दिशा देता है – जहां तकनीक उपभोक्ता को सशक्त बनाए, न कि उन्हें भ्रमित करे।
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