ब्रिटेन सरकार ने इमिग्रेशन नीति में बड़े बदलावों की घोषणा की है, जिसका सीधा असर भारत समेत कई देशों के प्रवासियों पर पड़ने वाला है। इस कदम का उद्देश्य यूके आने वाले प्रवासियों की संख्या को नियंत्रित करना है, लेकिन इससे भारतीय स्टूडेंट्स, हेल्थ सेक्टर के वर्कर्स और पहले से वहां रह रहे अप्रवासियों की परेशानियां बढ़ सकती हैं।
यूके लंबे समय से भारतीयों के लिए शिक्षा, नौकरी और स्थायी निवास के लिहाज से एक पसंदीदा गंतव्य रहा है। लेकिन अब नए नियमों के तहत वहां जाकर पढ़ाई करना या काम ढूंढना पहले जितना आसान नहीं रहेगा। ब्रिटेन सरकार का मानना है कि अप्रवासी जनसंख्या को सीमित करना आवश्यक है, जबकि आलोचकों का कहना है कि ये कदम न केवल यूके की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएंगे, बल्कि सामाजिक रूप से भी कठिनाइयाँ खड़ी करेंगे।
नए इमिग्रेशन नियमों के मुख्य बिंदु
- वर्क वीज़ा के लिए बढ़ी शैक्षणिक योग्यता की मांग:
अब यूके में काम करने के लिए वीज़ा पाने वाले आवेदकों को पहले से अधिक क्वालिफिकेशन और स्किल्स की आवश्यकता होगी। इसका मतलब है कि केवल बेसिक योग्यता के आधार पर वीज़ा मिलना मुश्किल हो जाएगा। - पोस्ट-स्टडी वीज़ा की अवधि में कटौती:
अब विदेशी छात्रों को अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद केवल 18 महीनों तक यूके में रुकने की अनुमति होगी। पहले यह अवधि दो साल की हुआ करती थी। - स्थायी निवास के लिए बढ़ा समय:
पहले प्रवासियों को 5 साल तक यूके में रहने के बाद स्थायी निवास (Indefinite Leave to Remain – ILR) के लिए आवेदन करने का अधिकार था। अब इसे बढ़ाकर 10 साल किया जा सकता है। - अंग्रेजी भाषा की शर्तें सख्त:
नए नियमों के तहत अंग्रेजी भाषा को लेकर योग्यता मापदंड और भी कठोर किए जा रहे हैं, जिससे गैर-यूरोपीय देशों के नागरिकों को अतिरिक्त चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
भारतीय प्रवासियों पर असर
ताजा आंकड़ों के अनुसार, जून 2024 में यूके पहुंचे गैर-यूरोपीय प्रवासियों में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक रही। काम और पढ़ाई मुख्य कारण रहे जिनकी वजह से भारतीयों ने यूके का रुख किया।
लेकिन अब जिन स्टूडेंट्स ने भविष्य की योजनाएं यूके में बनाईं थीं, उन्हें पुनर्विचार करना पड़ सकता है। पोस्ट-स्टडी वीज़ा की अवधि कम होने से उन्हें वहां स्थायी नौकरी ढूंढने या स्पॉन्सरशिप पाने में कठिनाई हो सकती है।
सोशल केयर और हेल्थ सेक्टर को होगी दिक्कत
ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में प्रवासी श्रमिकों का अहम योगदान है। खासकर हेल्थकेयर और सोशल केयर सेक्टर में प्रवासियों की भागीदारी काफी अधिक है। एक अनुमान के अनुसार, यूके की सोशल केयर वर्कफोर्स में 16% से अधिक वर्कर्स प्रवासी होते हैं।
अब सरकार चाहती है कि इन सेक्टर्स में विदेशी वर्कर्स की निर्भरता कम हो। लेकिन सवाल उठता है कि जब ब्रिटेन के लोग खुद इन क्षेत्रों में काम करने से बचते हैं, तो क्या यह निर्णय व्यावहारिक है?
यूनिवर्सिटी और इंटरनेशनल स्टूडेंट्स
ब्रिटिश यूनिवर्सिटीज़ इंटरनेशनल स्टूडेंट्स से मोटी ट्यूशन फीस लेती हैं, जिससे उन्हें आर्थिक मजबूती मिलती है। 2022-23 में रिकॉर्ड 2.6 लाख भारतीय स्टूडेंट्स ने यूके में पढ़ाई के लिए आवेदन किया था।
अगर वीज़ा शर्तें और भी कठोर होती हैं, तो यह न केवल स्टूडेंट्स के लिए मुश्किल होगा, बल्कि यूनिवर्सिटीज़ की फंडिंग पर भी असर पड़ेगा।
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क्यों हो रहे हैं ये बदलाव?
1960 से 1990 तक ब्रिटेन में जितने अप्रवासी आए, उतने ही लोग बाहर भी गए। लेकिन 1990 के बाद अप्रवासन की दर में तेजी आई। 2000 के दशक में यूरोपियन यूनियन के विस्तार के साथ ब्रिटेन ने अपनी सीमाएं नई सदस्य देशों के लिए खोल दीं।
उम्मीद से ज्यादा लोगों के आने पर पॉलिटिकल दबाव बढ़ा और 2016 में ब्रेक्सिट हुआ, जिसमें इमिग्रेशन एक बड़ा मुद्दा बना। इसके बाद ब्रिटेन ने यूरोपीय देशों से आने वाले प्रवासियों के लिए भी बॉर्डर कंट्रोल सख्त कर दिए।
2023 के आंकड़े क्या बताते हैं?
2023 में 9 लाख 6 हजार अप्रवासी ब्रिटेन पहुंचे, जो कि एक रिकॉर्ड संख्या है। इतने बड़े स्तर पर लोगों के आने से वहां सामाजिक और राजनीतिक दबाव बढ़ा। लोग चिंतित हैं कि कहीं सार्वजनिक सेवाओं पर असर न पड़े।
इसका नतीजा यह हुआ कि ब्रिटेन की सरकारों पर इमिग्रेशन को एक चुनावी मुद्दा बनाने का दबाव बन गया। यहां तक कि पहले से यूके में रह रहे प्रवासियों के भविष्य पर भी सवाल उठने लगे हैं।
क्या है आगे की राह?
सरकार अपने मतदाताओं को दिखाना चाहती है कि वह अप्रवासियों की संख्या को नियंत्रित कर रही है। मगर आलोचकों का कहना है कि इस तरह के कठोर कदम देश की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। खासकर जब देश को हेल्थ और सोशल केयर जैसे क्षेत्रों में कुशल कर्मचारियों की जरूरत हो।
ब्रिटेन की नई इमिग्रेशन नीति भारत सहित अन्य देशों के लोगों के लिए कई चुनौतियां पेश करेगी। वीज़ा नियमों की सख्ती, स्थायी निवास की बढ़ी हुई अवधि और पोस्ट-स्टडी वीज़ा की कटौती उन लाखों छात्रों और पेशेवरों के लिए कठिनाइयों का सबब बन सकती है जो यूके में अपना करियर बनाना चाहते हैं।
सरकार भले ही प्रवासियों की संख्या को सीमित करना चाहती हो, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर इसके दूरगामी परिणाम ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था और वैश्विक छवि पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं।
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