भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में गोल्ड लोन को लेकर कुछ नए सख़्त नियमों का मसौदा जारी किया है। इन नियमों का मक़सद जहां एक ओर कर्ज व्यवस्था को अधिक पारदर्शी और सुरक्षित बनाना है, वहीं दूसरी ओर यह भी सुनिश्चित करना है कि सोने की आड़ में धोखाधड़ी और लोन डिफॉल्ट को रोका जा सके। लेकिन जैसे ही ये प्रस्तावित नियम सार्वजनिक हुए, वित्त मंत्रालय ने RBI को सुझाव दिया कि ₹2 लाख तक के छोटे गोल्ड लोन को इन सख़्त नियमों के दायरे से बाहर रखा जाए।
इस लेख में हम समझेंगे कि RBI के ये नए नियम क्या हैं, इनका मक़सद क्या है, सरकार ने इसमें ढील क्यों मांगी, और इनका आम जनता पर क्या असर पड़ेगा।
पिछले वर्षों में क्यों बढ़ी गोल्ड लोन की मांग?
भारत में परंपरागत रूप से सोना न सिर्फ़ आभूषण के तौर पर, बल्कि निवेश और आपात स्थिति में आर्थिक सहारा देने वाली संपत्ति के रूप में भी देखा जाता है। हाल के वर्षों में सोने की क़ीमतों में तेज़ी और महंगाई के बढ़ते दबाव के चलते लोगों ने गोल्ड लोन को तेजी से अपनाया है। खासकर मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोगों में यह विकल्प अधिक लोकप्रिय हुआ है क्योंकि इसमें प्रोसेसिंग जल्दी होती है और दस्तावेज़ी प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है।
हालांकि, इसी के साथ कुछ बुरी प्रथाएं भी देखने को मिली हैं, जैसे एक ही सोने के ज़मानत पर कई जगह से लोन लेना, गोल्ड की शुद्धता की गलत जांच, गोल्ड की ओवरवैल्यूएशन, और संदिग्ध स्रोत से आए सोने पर लोन देना।
RBI का गोल्ड लोन के लिए नया मसौदा क्या कहता है?
RBI द्वारा जारी किए गए मसौदे में कुछ प्रमुख बातें शामिल हैं:
- सख्त वैरिफिकेशन अनिवार्य:
बैंक या एनबीएफसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि गिरवी रखा गया सोना उसी व्यक्ति का हो जो लोन ले रहा है। कर्ज लेने वाले को यह लिखित डिक्लेरेशन देना होगा कि वह सोना उसका ही है और उसका स्रोत क्या है। - 22 कैरेट पर आधारित मूल्यांकन:
सोने का मूल्य 22 कैरेट की दर पर ही आंका जाएगा, जिससे इसकी ओवरवैल्यूएशन रोकी जा सके। - संदिग्ध स्रोत से सोने पर लोन नहीं:
बिना बिल की ज्वेलरी या संदिग्ध मालिकाना हक वाली संपत्ति पर गोल्ड लोन नहीं मिलेगा। - लोन टू वैल्यू (LTV) अनुपात की सीमा:
एनबीएफसी और गोल्ड फाइनेंस कंपनियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे गोल्ड की कुल वैल्यू का अधिकतम 75% तक ही लोन दें। - गोल्ड बिस्किट, ब्रिक्स और बार पर लोन नहीं मिलेगा:
अब से सिर्फ गोल्ड ज्वेलरी और कुछ मान्यताप्राप्त गोल्ड कॉइंस पर ही लोन मिलेगा। गोल्ड बिस्किट्स और बार्स को नियमों से बाहर कर दिया गया है। - उपयोग की निगरानी:
लोन का उपयोग कहां और कैसे किया जा रहा है, इस पर भी बैंकों को निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं।
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सरकार क्यों चाहती है ₹2 लाख तक के लोन पर छूट?
वित्त मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि ₹2 लाख तक के गोल्ड लोन पर इन सख्त नियमों को लागू न किया जाए। मंत्रालय का तर्क है कि देश की बड़ी आबादी ऐसे छोटे गोल्ड लोन पर निर्भर है, और इन नियमों के चलते उनकी जरूरतों पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया कि इन नियमों को 1 जनवरी 2026 से लागू किया जाए, ताकि बैंकों को तैयारी का पर्याप्त समय मिल सके।
इन नियमों के पीछे RBI की मंशा क्या है?
RBI का उद्देश्य स्पष्ट है—बढ़ते डिफॉल्ट्स को रोकना, नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (NPA) को कम करना और गोल्ड लोन प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी बनाना। आज की तारीख में कुछ एनबीएफसी और गोल्ड फाइनेंस कंपनियों के गोल्ड लोन पोर्टफोलियो में NPA बढ़ रहे हैं। कई मामलों में एक ही सोने को बार-बार गिरवी रख कर लोन लिया जा रहा है, जिससे सिस्टम को धोखा देने की संभावना बढ़ रही है।
इसके अलावा गोल्ड की नीलामी की प्रक्रिया भी लंबी और जटिल होती है। यदि कोई ग्राहक डिफॉल्ट करता है, तो बैंक को गिरवी रखे गए सोने की नीलामी करनी होती है, जिसमें समय और संसाधन दोनों खर्च होते हैं। इस कारण बैंक और एनबीएफसी को लिक्विडिटी की समस्या का सामना भी करना पड़ता है।
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क्या ये नियम आम जनता को प्रभावित करेंगे?
हां, लेकिन दोनों पहलुओं से।
जहां एक ओर यह नियम छोटे कर्जदारों पर अतिरिक्त बोझ डाल सकते हैं, वहीं दूसरी ओर इससे गोल्ड लोन की प्रक्रिया अधिक सुरक्षित, पारदर्शी और भरोसेमंद बन सकती है।
- आम जनता को सोना गिरवी रखने से पहले उसके बिल, स्वामित्व और स्रोत की पूरी जानकारी रखनी होगी।
- बैंकों को गोल्ड स्टोरेज, मूल्यांकन और निगरानी में अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी, जिससे प्रोसेसिंग टाइम बढ़ सकता है।
हालांकि सरकार के हस्तक्षेप से यह संभावना बन रही है कि ₹2 लाख तक के गोल्ड लोन लेने वालों को राहत मिल सकती है।
RBI के ये नए प्रस्तावित नियम गोल्ड लोन की व्यवस्था में आवश्यक सुधार लाने की दिशा में एक बड़ा कदम हैं। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे आम लोगों को कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियों का सामना करना पड़ेगा। लेकिन अगर इससे कर्ज प्रणाली मजबूत होती है, डिफॉल्ट्स कम होते हैं और बैंकों की वित्तीय स्थिति बेहतर होती है, तो यह लंबी अवधि में लाभकारी सिद्ध होगा।
सरकार और RBI के बीच संतुलन बनाकर यदि नियमों को लागू किया जाए, तो यह व्यवस्था को सुधारने के साथ-साथ आम लोगों को राहत भी दे सकती है।
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