मानवाधिकार सेनानी Jaswant Singh Khalra ने 25,000 गुमनाम शवों की सच्चाई उजागर कर पंजाब पुलिस की अमानवीयता को बेनकाब किया। पढ़ें उनकी बहादुरी की कहानी।
Jaswant Singh Khalra: एक नाम जिसने अकेले झकझोर दी पूरी व्यवस्था
भारत के इतिहास में बहुत कम ऐसे नाम हुए हैं जिन्होंने सत्ता के अन्याय और दमन के खिलाफ अकेले खड़े होकर पूरी व्यवस्था को चुनौती दी हो। Jaswant Singh Khalra एक ऐसे ही निडर सिख मानवाधिकार कार्यकर्ता थे, जिन्होंने 1995 में पंजाब पुलिस द्वारा हजारों अज्ञात शवों के अवैध दाह-संस्कार का खुलासा कर पूरी दुनिया को चौंका दिया।
वे सिर्फ एक सामाजिक कार्यकर्ता नहीं, बल्कि मानवता और न्याय के लिए अपना जीवन बलिदान कर देने वाले योद्धा थे। उनकी कहानी न केवल पंजाब बल्कि पूरे भारत के इतिहास में मानवाधिकार के संघर्ष का प्रतीक बन चुकी है।
एक बैंक अधिकारी से मानवाधिकार सेनानी तक का साहसी सफर
Jaswant Singh Khalra का जीवन एक साधारण बैंक अधिकारी के रूप में शुरू हुआ था। वे अमृतसर के एक प्रतिष्ठित बैंक में निदेशक थे। लेकिन 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद हुए सिख विरोधी दंगों के बाद, उन्होंने राज्य की पुलिस व्यवस्था में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों को गंभीरता से लेना शुरू किया।
जब उन्होंने देखा कि:
- सिख युवाओं को आतंकवादी कहकर उठा लिया जाता है।
- पुलिस हिरासत से वे “गायब” हो जाते हैं।
- और फिर बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के शव को “अज्ञात” बताकर जला दिया जाता है।
तो उन्होंने फैसला लिया कि वे इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगे।
पारिवारिक पृष्ठभूमि – देशभक्ति की विरासत
Jaswant Singh Khalra के दादा हरनाम सिंह गदर पार्टी के क्रांतिकारी थे और Komagata Maru जहाज के यात्री भी थे। उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में जेल हुई थी। उनके परिवार की देशभक्ति की परंपरा ही Khalra के भीतर मानवता के लिए लड़ने का जज्बा बनी।
उनकी पत्नी परमजीत कौर खालरा आज भी मानवाधिकार संगठनों से जुड़ी हुई हैं। उनके दो बच्चे — नवकीरन कौर और जनमीत सिंह — हैं।
25,000 गुमनाम शव – एक सच्चाई जो सबको चौंका गई
Amritsar नगर निगम के श्मशानघाट के रिकॉर्ड खंगालते हुए Khalra ने एक बड़ा खुलासा किया — हजारों शवों को अज्ञात बताकर बिना किसी पहचान के जलाया गया था। ये वही लोग थे जिन्हें पंजाब पुलिस ने आतंकवाद के नाम पर उठाया और फिर मार दिया।
उन्होंने जिन प्रमुख मामलों पर काम किया:
- Behla गाँव में हिरासत में हत्या
- Human shield के तौर पर नागरिकों की हत्या
- 25,000 से अधिक अज्ञात शवों का दाह-संस्कार
- ईमानदार पुलिसकर्मियों की हत्या
CBI ने जांच में केवल Tarn Taran जिले में ही 2097 शवों की पुष्टि की। Khalra का आकलन था कि पंजाब के अन्य जिलों को जोड़ने पर यह संख्या 25,000 से अधिक थी।
सुप्रीम कोर्ट और NHRC की मुहर
Jaswant Singh Khalra द्वारा एकत्र किए गए दस्तावेज़ों को NHRC और भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने गंभीरता से लिया। NHRC ने अमृतसर, मजीठा और तरनतारन में हुए अवैध अंतिम संस्कार की पुष्टि की। यह भारतीय लोकतंत्र में मानवाधिकार के उल्लंघन का एक काला अध्याय था।
जसवंत सिंह खालरा का अपहरण और हत्या
6 सितंबर 1995 को, जसवंत सिंह खालरा अपने घर के बाहर अपनी कार धो रहे थे, जब पंजाब पुलिस के सादे कपड़ों में कुछ अधिकारी उन्हें अमृतसर से जबरन उठाकर तरनतारन जिले के जब्बाल पुलिस स्टेशन ले गए। इससे पहले, जब श्री खालरा ने पंजाब पुलिस द्वारा 25,000 से अधिक युवाओं के अवैध दाह-संस्कार और फर्जी एनकाउंटर का पर्दाफाश किया था, तो तरनतारन के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अजीत संधू ने खुलेआम धमकी दी थी।
गुमशुदगी और रहस्यमयी हत्या
पुलिस ने खालरा की गिरफ्तारी से इनकार किया, लेकिन कई चश्मदीद गवाहों और स्वतंत्र जांचों ने पुष्टि की कि वे पुलिस हिरासत में थे।
CBI की जांच से पता चला कि उन्हें अमानवीय यातनाएं दी गईं, और करीब 52 दिनों तक हिरासत में रखकर मार दिया गया। उनकी मृत्यु की कहानी एक रहस्य ही बनी रहती, अगर कुलदीप सिंह नामक एक पूर्व विशेष पुलिस अधिकारी सामने न आते।
गवाह कुलदीप सिंह का खुलासा
कुलदीप सिंह को खालरा को हिरासत में भोजन देने का काम सौंपा गया था। उन्होंने बताया कि हत्या से कुछ दिन पहले पंजाब पुलिस के डीजीपी केपीएस गिल खुद खालरा से मिलने आए थे और उनसे आधे घंटे तक बात की थी।
हत्या की भयावह रात
27 अक्टूबर 1995 की रात करीब 10 बजे, कुलदीप सिंह ने देखा कि पुलिस अधिकारियों ने पहले खालरा को बेरहमी से पीटा (जो पहले से ही आम बात बन चुकी थी), फिर उसके सीने में दो गोलियां मारीं।
शव को एक पुलिस जीप में डालकर हरिके नहर में फेंक दिया गया। और तो और, अरविंदर और बलविंदर नामक दो पुलिसकर्मियों को इस “काम” के लिए इनाम के तौर पर दो बोतल शराब दी गई, जिसे उन्होंने हरिके रेस्ट हाउस के लॉन में बैठकर पीया, जबकि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी भीतर जश्न मना रहे थे।
कानूनी कार्यवाही:
- 1996: CBI ने 9 पुलिस अधिकारियों पर केस दर्ज किया
- 2005: 6 दोषी पाए गए; 2 को आजीवन कारावास, 4 को 7 साल
- 2007: सभी 6 की सजा बढ़ाकर आजीवन कारावास
- 2011: सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा
अपहरण की पुष्टि और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया:
- 6 सितंबर 1995: Jaswant Singh Khalra को उनके घर के बाहर से अगवा किया गया। कई चश्मदीदों ने उन्हें पंजाब पुलिस के साथ जाते हुए देखा।
- 12 सितंबर 1995: उनकी पत्नी परमजीत कौर खालरा ने सुप्रीम कोर्ट में Habeas Corpus याचिका दायर की।
- नवंबर 1995: सुप्रीम कोर्ट ने CBI को जांच का आदेश दिया।
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CBI रिपोर्ट के निष्कर्ष (30 जुलाई 1996):
- CBI ने अपनी रिपोर्ट में 9 पुलिस अधिकारियों को अपहरण के लिए जिम्मेदार ठहराया।
- रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि खालरा को कांग पुलिस स्टेशन, तरनतारन में हिरासत में रखा गया था और 24 अक्टूबर 1995 के बाद से उनका कोई अता-पता नहीं चला।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और समर्थन
Khalra की हत्या ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी। Amnesty International, Human Rights Watch, और UNHRC जैसी संस्थाओं ने इस पर भारत सरकार से जवाब माँगा।
उनकी याद में कनाडा, अमेरिका और यूरोप में प्रदर्शन हुए। आज Khalra Mission Organisation जैसे कई संस्थान उनके नाम पर चल रहे हैं।
UN के “Declaration on the Protection of All Persons from Enforced Disappearance” के अनुसार:
- गवाहों, वकीलों और पीड़ितों को सुरक्षा मिलनी चाहिए।
- संदिग्ध पुलिसकर्मियों को जांच के दौरान निलंबित किया जाना चाहिए — जो नहीं हुआ।
Amnesty का आरोप: यह सब न्याय की खुली अवमानना है।
Jaswant Singh Khalra की विरासत
उनके जीवन पर कई डॉक्युमेंट्री और लेख प्रकाशित हुए हैं। Khalra आज भी दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।
वे केवल एक शहीद नहीं, बल्कि एक चेतावनी हैं — कि जब अन्याय के खिलाफ एक इंसान खड़ा होता है, तो इतिहास खुद को झुकाता है।
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