पंजाब की धार्मिक राजधानी कहे जाने वाले अमृतसर शहर को ज़्यादातर लोग स्वर्ण मंदिर के लिए जानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस शहर में कुछ ऐसे कम-ज्ञात ऐतिहासिक गुरुद्वारे भी हैं, जो सिख इतिहास की महान गाथाओं को संजोए हुए हैं? ये स्थान न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर हैं, बल्कि गुरु साहिबानों की सेवा, तपस्या और ऐतिहासिक घटनाओं के गवाह भी हैं।
यदि आप भी गुरु परंपरा को और करीब से जानना चाहते हैं, तो ये 5 अमृतसर के कम-ज्ञात गुरुद्वारे आपकी यात्रा सूची में जरूर होने चाहिए।
1. गुरुद्वारा तोबा भाई शालो जी, अमृतसर
स्थान – टेलीफोन एक्सचेंज के पास, अमृतसर
ऐतिहासिक महत्व –
यह गुरुद्वारा उस पवित्र सरोवर की स्मृति में बना है, जहाँ भाई शालो जी अमृतसर शहर के निर्माण के समय ठहरे थे। भाई शालो जी का जन्म 29 सितंबर 1554 को मालवा क्षेत्र के गांव “दौला किंगरा” में हुआ था। उनके माता-पिता पहले हज़रत सखी सरवर के अनुयायी थे, लेकिन गुरु रामदास जी के दर्शन के बाद वे गुरसिख बन गए।
भाई शालो जी ने गुरु रामदास जी, गुरु अर्जन देव जी और गुरु हरगोबिंद साहिब जी की सेवा की। वे गुरु साहिब के निकटतम सेवकों में से एक थे। 1589 में वे गुरु अर्जन देव जी की शादी में मौ साहिब गए और 1605 में गुरु हरगोबिंद जी की शादी में भी शामिल हुए। उनकी धर्मशाला से होकर लाहौर से आई संगत अमृतसर पहुंचती थी।
इस गुरुद्वारे की इमारत का निर्माण महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल (1799–1839) में हुआ था और इसका वास्तुशिल्प उस काल की शैली को दर्शाता है।
2. गुरुद्वारा रामसर साहिब, अमृतसर
स्थान – छत्ताविंड गेट क्षेत्र, अमृतसर
ऐतिहासिक महत्व –
गुरु अर्जन देव जी ने यहां पर रामसर सरोवर खुदवाया और यहीं पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पहले स्वरूप का संकलन कार्य किया। भाई गुरदास जी ने यहां गुरु जी के निर्देशन में पवित्र बाणियों का लेखन किया।
साल 1604 में श्री हरिमंदिर साहिब में इस ग्रंथ की स्थापना की गई। बाद में यही ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी के रूप में स्वीकार किया गया। आज भी इस स्थान पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की छपाई की जाती है, जो इसे और भी खास बनाता है।
3. गुरुद्वारा जनम स्थान श्री गुरु अमरदास जी, बसरके गांव
स्थान – बसरके गांव, जिला अमृतसर
ऐतिहासिक महत्व –
गुरु अमरदास जी, सिख धर्म के तीसरे गुरु, यहीं पर तेज भान जी और माता सुलखनी जी के घर जन्मे थे।
गंगा यात्रा पर जाते समय उन्हें बिबी अमरो जी के माध्यम से गुरु नानक देव जी की बाणी सुनने को मिली, जिससे वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने खडूर साहिब जाकर गुरु अंगद देव जी की सेवा की।
गुरु जी 12 वर्षों तक सेवा करते रहे और आगे चलकर उन्हें गुरु गद्दी प्राप्त हुई। इस गुरुद्वारे का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह गुरु परंपरा में आस्था और सेवा की शुरुआत का प्रतीक है।
4. गुरुद्वारा गुरु की वडाली, अमृतसर
स्थान – गांव गुरु की वडाली, 8 किमी दूर अमृतसर शहर से
ऐतिहासिक महत्व –
यह स्थान गुरु हरगोबिंद साहिब जी की जन्मस्थली है। उनका जन्म 14 जून 1595 को हुआ था। इस गांव का नाम बाद में गुरु की वडाली पड़ा। यह स्थान हमें उस समय की याद दिलाता है जब गुरु हरगोबिंद जी ने सिख धर्म को सैन्य शक्ति और धार्मिक चेतना दोनों के संतुलन की ओर अग्रसर किया।
यह गुरुद्वारा शांति और गरिमा से भरपूर है, और यहां का वातावरण आत्मिक एकाग्रता को प्रेरित करता है।
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5. गुरुद्वारा गुरु की कोठरी, चोला साहिब, तरनतारण
स्थान – गांव चोला साहिब, तरनतारण से 24 किमी दूर
ऐतिहासिक महत्व –
यह स्थान उस समय का प्रतीक है जब गुरु अर्जन देव जी अपनी पत्नी माता गंगा जी और पुत्र गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ यहां लगभग 2 वर्ष 5 महीने और 13 दिन रुके थे।
यहां एक प्राचीन कुआं भी है जिसमें गुरु अर्जन देव जी स्नान करते थे। यह गुरुद्वारा माता गंगा जी के स्मरण में भी जाना जाता है।
आज भी यह स्थान सिख इतिहास की गहराई को अनुभव करने के लिए उपयुक्त है, जहां आप सेवा, त्याग और गुरबाणी का प्रत्यक्ष अनुभव कर सकते हैं।
अमृतसर के कम-ज्ञात गुरुद्वारे न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। यदि आप अमृतसर आते हैं तो केवल स्वर्ण मंदिर तक सीमित न रहें। इन पवित्र स्थलों की यात्रा करें, जहां गुरु साहिबान के चरण पड़े थे, और वहां की हवा में अभी भी सेवा, भक्ति और त्याग की खुशबू महसूस की जा सकती है।
(डिस्क्लेमर): इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न ऐतिहासिक स्रोतों, धार्मिक ग्रंथों और गुरुद्वारों की आधिकारिक वेबसाइट्स से संकलित की गई है। इसका उद्देश्य पाठकों को सिख इतिहास और अमृतसर के कम-ज्ञात धार्मिक स्थलों की जानकारी देना है। लेख में दी गई किसी भी जानकारी से यदि किसी व्यक्ति या समुदाय की धार्मिक भावना आहत होती है, तो उसके लिए लेखक या प्रकाशक का कोई उद्देश्य नहीं है। कृपया किसी भी आधिकारिक यात्रा या धार्मिक अनुष्ठान से पहले संबंधित स्थान की स्थानीय अथॉरिटी या गुरुद्वारा प्रबंधन से पुष्टि अवश्य करें।
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