क्या बिना अमेरिका के यूक्रेन में रूस को रोक पाएंगे यूरोपीय देश?

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Vice President JD Vance, right, speaks with Ukrainian President Volodymyr Zelenskyy, left, as President Donald Trump listens in the Oval Office at the White House, Friday, Feb. 28, 2025, in Washington. (AP Photo/ Mystyslav Chernov)

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से यूरोप में यह बहस तेज़ हो गई है कि क्या अमेरिका की गैरमौजूदगी में यूरोपीय देश रूस को रोक सकते हैं। इस सवाल को और हवा तब मिली जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन की सैन्य क्षमता की तारीफ करते हुए कहा कि ब्रिटेन अपनी सुरक्षा खुद कर सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ब्रिटेन और यूरोप अमेरिका के बिना रूस को रोकने में सक्षम हैं?

यूक्रेन को कितनी सेना की जरूरत?

यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने स्पष्ट किया है कि रूस को रोके रखने के लिए उन्हें 1-2 लाख अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की जरूरत है। लेकिन यूरोप अपने दम पर इतने सैनिक तैनात नहीं कर सकता। वर्तमान में पश्चिमी अधिकारी केवल 30,000 सैनिकों को भेजने पर विचार कर रहे हैं। इसके अलावा, यूरोपीय देशों के युद्धक विमान और नौसैनिक पोत यूक्रेन के एयरस्पेस और समुद्री मार्गों की निगरानी करेंगे, लेकिन ये सैनिक पूर्वी यूक्रेन में लड़ाई के लिए तैनात नहीं होंगे।

पश्चिमी अधिकारियों का मानना है कि इतने उपाय पर्याप्त नहीं होंगे, इसलिए वे अमेरिका से समर्थन की मांग कर रहे हैं। अमेरिका की सैन्य ताकत, खुफिया जानकारी जुटाने की क्षमता और लॉजिस्टिक सपोर्ट के बिना यूरोप की सैन्य शक्ति अधूरी मानी जाती है। पश्चिमी देशों का मानना है कि कम से कम अमेरिकी एयरफोर्स के लड़ाकू विमानों को पोलैंड और रोमानिया में तैनात किया जाना चाहिए ताकि जरूरत पड़ने पर जवाबी कार्रवाई की जा सके।

यूरोप की सैन्य क्षमताएं और अमेरिका पर निर्भरता

हालांकि, यूरोपीय देशों ने हाल ही में यूक्रेन को अधिक हथियार मुहैया कराए हैं, लेकिन अमेरिका द्वारा दी गई लंबी दूरी की मिसाइलों और एयर डिफेंस सिस्टम की तुलना में यूरोपीय हथियार कम प्रभावी हैं। 2011 में लीबिया पर नाटो के हवाई हमले के दौरान भी यह साफ हो गया था कि यूरोप अमेरिकी सैन्य टैंकरों और हथियारों पर निर्भर है।

फ्रांस, डेनमार्क और स्वीडन जैसे कुछ यूरोपीय देश यूक्रेन के समर्थन में खड़े हैं, लेकिन स्पेन, इटली और जर्मनी ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। ऐसे में यूरोप के पास रूस के खिलाफ कोई बड़ा सैन्य अभियान चलाने की क्षमता फिलहाल नहीं दिखती।

ब्रिटेन की सेना पर ट्रंप का भरोसा, लेकिन क्या यह पर्याप्त है?

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब ट्रंप से यूक्रेन की सुरक्षा पर अमेरिका की गारंटी को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने सीधा जवाब देने से बचते हुए ब्रिटेन की सेना की तारीफ कर दी। लेकिन क्या ब्रिटेन अकेले रूस का मुकाबला कर सकता है? यह एक बड़ा सवाल है। ब्रिटेन की सेना में फिलहाल 70,000 नियमित सैनिक हैं, जो रूस के विशाल सैन्य बल की तुलना में बेहद कम हैं।

ब्रिटेन ही नहीं, यूरोप के अन्य देशों ने भी शीत युद्ध के बाद अपने रक्षा बजट में कटौती की है। हालांकि, अब कुछ देशों ने अपने सैन्य खर्च में बढ़ोतरी की है, लेकिन रूस का सैन्य बजट पूरे यूरोप के कुल रक्षा खर्च से अधिक है। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ के अनुसार, रूस ने अपने रक्षा बजट में 41% की बढ़ोतरी की है और यह उसकी कुल जीडीपी का 6.7% है, जबकि ब्रिटेन 2027 तक केवल 2.5% जीडीपी ही रक्षा बजट में खर्च करेगा।

क्या ट्रंप यूरोप को अकेला छोड़ देंगे?

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर ने अमेरिका से सुरक्षा की अतिरिक्त गारंटी मांगने की कोशिश की, लेकिन बिना किसी ठोस वादे के लौटे। अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसे पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर यूक्रेन में कोई भी पश्चिमी सेना भेजी जाती है, तो वह नाटो के अनुच्छेद 5 के तहत नहीं आएगी, यानी नाटो की सामूहिक रक्षा गारंटी लागू नहीं होगी।

अमेरिकी समर्थन के बिना यूरोप की सैन्य शक्ति रूस को रोकने में सक्षम नहीं दिखती। ऐसे में सवाल यही उठता है कि अगर ट्रंप फिर से राष्ट्रपति बनते हैं, तो क्या वह यूरोप को रूस के खिलाफ अकेला छोड़ देंगे? अगर ऐसा होता है, तो यूरोप को अपनी रक्षा नीति पर पुनर्विचार करना होगा और अमेरिका पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी।

क्या अमेरिका की भूमिका अपरिहार्य है?

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर अमेरिका से बिना किसी सैन्य गारंटी के लौटे हैं। हालांकि, ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री वेस ने बीबीसी से कहा, “ट्रंप नाटो के अनुच्छेद 5 के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिसमें एक सहयोगी पर हमला बाकी सभी सहयोगियों पर हमला माना जाता है।”

लेकिन अमेरिकी रक्षा मंत्री पीट हेगसे पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि यूक्रेन में भेजी गई कोई भी सैन्य टुकड़ी नाटो संधि के तहत नहीं आएगी और न ही अमेरिका वैसी सुरक्षा की गारंटी देगा। इसका अर्थ यह है कि यूरोप को अपने संसाधनों से ही रूस का सामना करना होगा।

क्या यूरोप रूस के खिलाफ एकजुट होगा?

फ्रांस यूरोप में एकमात्र ऐसा देश है, जिसने खुलकर ब्रिटेन का समर्थन किया है। उत्तर यूरोप के डेनमार्क और स्वीडन भी प्रतिबद्धता दिखा रहे हैं, लेकिन वे भी अमेरिका की तरह सीमित समर्थन देने के पक्ष में हैं। स्पेन, इटली और जर्मनी अब तक इस सैन्य पहल के खिलाफ ही नजर आ रहे हैं।

स्टार्मर को अभी भी उम्मीद है कि अमेरिका यूरोप की सेना का समर्थन करेगा। लेकिन ट्रंप का सवाल बना हुआ है – क्या ब्रिटेन की सेना रूस से मुकाबला कर सकती है?

रूस की सेना कमजोर जरूर हुई है, लेकिन मौजूदा हालात में इस सवाल का जवाब अब भी ‘नहीं’ ही है। यूरोप को अगर अमेरिका के बिना रूस का सामना करना है, तो उसे अपनी सैन्य शक्ति और रणनीति में बड़े बदलाव करने होंगे।

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