चीन की दुर्लभ धातुओं पर नई नीति: भारत के लिए अवसर या अनिश्चितता?

India Briefs Team
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चीन की दुर्लभ धातुओं पर नई नीति: भारत के लिए अवसर या अनिश्चितता?

चीन, जो वैश्विक व्यापार नीतियों और भू-राजनीतिक फैसलों को लेकर हमेशा चर्चा में रहता है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार वजह है – Rare Earth Elements या दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के निर्यात को लेकर उसकी ताज़ा नीति। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने यह स्पष्ट किया है कि कुछ निर्यात आवेदनों को हरी झंडी दे दी गई है, लेकिन यह नहीं बताया गया कि किन-किन देशों को यह मंजूरी दी गई है।

इस कदम ने न सिर्फ वैश्विक उद्योगों को राहत की उम्मीद दी है, बल्कि भारत जैसे विकासशील देशों में भी उत्सुकता जगा दी है कि क्या उन्हें इससे कोई लाभ मिलेगा?


किस उद्योग को मिलेगा सबसे ज़्यादा लाभ?

रेअर अर्थ मटेरियल्स आधुनिक तकनीक और उद्योगों की नींव हैं। इनका इस्तेमाल विशेष रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में होता है:

क्षेत्रउपयोग
इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)मोटर मैग्नेट्स, बैटरियां
मोबाइल और कंप्यूटरडिस्प्ले, प्रोसेसर चिप्स
सेमीकंडक्टर उद्योगट्रांजिस्टर निर्माण
डिफेंस एवं मिसाइलगाइडेंस सिस्टम और सेंसर
नवीकरणीय ऊर्जाविंड टर्बाइन, सोलर सेल

इन सामग्रियों की मांग दुनियाभर में तेजी से बढ़ रही है, खासकर ग्रीन एनर्जी और डिजिटलाइजेशन के युग में। ऐसे में चीन का यह फैसला कई वैश्विक उद्योगों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आया है।


क्या भारत को होगा इसका सीधा फायदा?

यह अभी साफ नहीं है कि चीन की इस आंशिक मंजूरी में भारत शामिल है या नहीं, लेकिन यह संभावना ज़रूर है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों में EV इंडस्ट्री, सेमीकंडक्टर निर्माण, और रक्षा क्षेत्र में जबरदस्त निवेश और विकास किया है।

भारत की कुछ प्रमुख योजनाएं जिनमें Rare Earth Elements की ज़रूरत है:

  • FAME-II योजना: इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए
  • PLI स्कीम: हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग को प्रमोट करना
  • ISRO और DRDO परियोजनाएं: डिफेंस और स्पेस टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भरता

यदि भारत को चीन से इन सामग्रियों की आपूर्ति फिर से मिलने लगती है, तो इससे मैन्युफैक्चरिंग लागत घटेगी और प्रोजेक्ट्स में तेजी आएगी।


चीन का पिछला प्रतिबंध और उसका असर

यह समझना जरूरी है कि चीन ने 4 अप्रैल 2025 को Rare Earth Elements के निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। इसके कारण वैश्विक स्तर पर कई कंपनियों को बड़ा झटका लगा:

  • सुजुकी जापान को अपने लोकप्रिय मॉडल “Swift” का उत्पादन रोकना पड़ा।
  • भारतीय ऑटोमोबाइल कंपनियों की सप्लाई चेन में रुकावट आई।
  • सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में लागत और डिलीवरी टाइम दोगुना हो गया।

यह प्रतिबंध चीन ने अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ्स और डिफेंस टेक्नोलॉजी से जुड़ी चिंताओं के जवाब में लगाया था।


सुरक्षा कारणों से नियंत्रण जरूरी: चीन की दलील

चीन ने यह भी कहा कि कुछ Rare Earth Elements का इस्तेमाल मिसाइल निर्माण, गाइडेड वेपन्स और रडार सिस्टम्स में होता है। इसलिए, इन सामग्रियों के निर्यात पर पूर्ण नियंत्रण आवश्यक है ताकि ये गलत हाथों में न जाएं।

यह एक रणनीतिक पहल है जिससे चीन न केवल अपना वैश्विक प्रभुत्व बनाए रखना चाहता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि इन संसाधनों का उपयोग केवल भरोसेमंद साझेदारों द्वारा किया जाए।


वैश्विक प्रभुत्व में चीन की भूमिका

दुर्लभ पृथ्वी धातुएं कुल 17 तत्वों से बनी होती हैं जिनमें से कुछ प्रमुख हैं: नियोडाइमियम (Nd), डाइसप्रोसियम (Dy), टेर्बियम (Tb), लैंथेनम (La), यट्रियम (Y)।

श्रेणीविवरण
कुल वैश्विक भंडारचीन के पास 61%
वैश्विक निर्यात नियंत्रणलगभग 90%
प्रोसेसिंग क्षमताउच्चतम – पर्यावरणीय हानि के साथ
वैकल्पिक स्रोतअफ्रीका, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया (बहुत सीमित)

इसका मतलब है कि चीन यदि निर्यात सीमित कर दे, तो पूरी दुनिया की आपूर्ति शृंखला पर असर पड़ता है।


भारत को क्या करना चाहिए?

अगर भारत को चीन से तत्काल लाभ नहीं भी मिलता है, तो उसे दीर्घकालीन रणनीति बनानी होगी। सरकार पहले ही RARE EARTH ELEMENTS के घरेलू भंडार की खोज में लगी है:

  1. आंध्र प्रदेश और झारखंड में खनिज भंडार की खोज।
  2. भारत-अमेरिका साझेदारी के तहत रीसाइक्लिंग प्लांट लगाने की योजना।
  3. ‘Make in India’ के तहत वैकल्पिक आपूर्ति स्रोतों की खोज।

यदि भारत अपने स्रोतों को विकसित कर लेता है, तो चीन पर निर्भरता कम होगी और दीर्घकाल में रणनीतिक बढ़त मिलेगी।

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भारत के लिए संकेत या अवसर?

चीन द्वारा दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर आंशिक मंजूरी एक महत्वपूर्ण वैश्विक घटना है। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि भारत को इसका सीधा लाभ मिलेगा या नहीं, लेकिन अगर भारत को अनुमति मिलती है, तो यह उसकी इलेक्ट्रिक व्हीकल, डिफेंस और टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के लिए बूस्टर साबित हो सकता है।

सरकार को चाहिए कि वह इस मौके का रणनीतिक इस्तेमाल करते हुए, घरेलू उत्पादन और वैकल्पिक स्रोतों पर भी ध्यान दे ताकि भारत की आत्मनिर्भरता बढ़े और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वह टिक सके।

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